🌺 आजका भगवत चिंतन🌺
🌺मैं पन हमारा स्वरूप नहीं है। ‘मैं’ (अहम्) अलग है, स्वरूप अलग है। ‘मैं’ के कारण ‘हूँ’ है। ‘मैं’ न रहे तो ‘हूँ’ नहीं रहेगा, प्रयुत ‘हैं’ रहेगा। ‘मै’ जड़ है, ‘हूँ’ चेतन है। ‘मैं हूँ’- यह चिज्जड़ग्रन्थि है। ‘मैं’ को छोड़ने सें ग्रन्थि भेद हो जाता है। परमात्मा आनन्दरूप है। संसार सुख-दुःखरूप है। दुःख के साथ जो सुख है, वह दुःख का कारण है। सुखके भोगीको दुःख भोगना ही पड़ेगा। सुखमात्र दुःखमें परिणत हो जाता है। भोगी मनुष्य सुख-दुख दोनों को भोगता है। परन्तु योगी सुख-दुःखको नहीं भोगता। यह शरीर सुख-दुःख भोगने के लिये नहीं है, प्रत्युत दोनों से ऊँचा उठकर आनन्द पाने है।
🌺सुखदायी परिस्थिति सेवा करने के लिये है। आपमें जो बड़प्पन है, वह दूसरों का दिया हुआ है। सुखको भोगना दुःखको निमन्त्रण देना है। दुःखदायी परिस्थिति सुखकी चाहना मिटाने के लिये है।
दूसरे के दुःखसे दुःखी होनेपर हमारा दुःख मिट जाता है। दूसरे सुखी होने पर हम सुखी हो जाते हैं। काम खुद करो, आराम दूसरों को दो।
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