🕉हमारा सम्बन्ध ईश्वर के साथ है, संसार के साथ नहीं। जिसका सम्बन्ध हमारे साथ नहीं है, उसका त्याग करना है- ‘त्यागाच्छान्तिरनन्तरम्’ (गीता 12 । 12) । जिसके साथ हमारा समेबन्ध ही नहीं, उसका त्याग क्या करें ? त्याग करना है- भूलका। सम्बन्ध भूलसे माना है।
🕉 मैं शरीर हूँ और शरीर मेरा तथा मेरे लिये है- यह सम्बन्ध माना हुआ है, वास्तव में है नहीं। शरीर निरन्तर हमसे अलग हो रहा है। बचपन में जो शरीर था, वह अब नही है पर मैं वही हूँ। शरीर बदल गया, पर स्वयं नहीं बदला। यह हमारा, सबका अनुभव है। इस अनुभवका आदर करो तो जीवमुक्त हो जाओगे।
🕉जो अपना नहीं है, उसको अपना मानने से विश्वासघात होगा, धोखा होगा ! पहले बालकपन को अपना मानते थे, वह अब रहा क्या ? शरीर निरन्तर वियोग हो रहा है।
🕉जीव भगवान् से विमुख हुआ है, अलग नहीं और संसार के सम्मुख हुआ है, साथ नहीं।
🕉संसार से केवल सेवा के लिये ही सम्बन्ध माने। संसार को अपना और अपने लिये न माने। कोई भी काम अपने लिये न करके दूसरों की सेवा (हित)-के लिये करे। भजन-ध्यान आदि भी अपने लिये न करे।
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