महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास | Mahakaleshwar Temple History in Hindi - Spiritual HelpingEra

Sunday, March 11, 2018

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास | Mahakaleshwar Temple History in Hindi

Mahakaleshwar Temple – महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग हिन्दुओ के प्रमुख्य शिव मंदिरों में से एक है और शिवजी के बारह ज्योतिर्लिंगों में से भी एक है, इसके साथ ही इसे भगवान शिव का सबसे पवित्र स्थान भी माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग भारत में मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में स्थित है। यह मंदिर रूद्र सागर सरोवर के किनारे पर बसा हुआ है। कहा जाता है की अधिष्ट देवता, भगवान शिव ने इस लिंग में स्वयंभू के रूप में बसते है, इस लिंग में अपनी ही अपार शक्तियाँ है और मंत्र-शक्ति से ही इस लिंग की स्थापना की गयी थी।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का इतिहास – Mahakaleshwar Temple History in Hindi

वर्तमान मंदिर को श्रीमान पेशवा बाजी राव और छत्रपति शाहू महाराज के जनरल श्रीमान रानाजिराव शिंदे महाराज ने 1736 में बनवाया था। इसके बाद श्रीनाथ महादजी शिंदे महाराज और श्रीमान महारानी बायजाबाई राजे शिंदे ने इसमें कई बदलाव और मरम्मत भी करवायी थी।
महाराजा श्रीमंत जयाजिराव साहेब शिंदे आलीजाह बहादुर के समय में 1886 तक, ग्वालियर रियासत के बहुत से कार्यक्रमों को इस मंदिर में ही आयोजित किया जाता था।

महाकालेश्वर मंदिर – Mahakaleshwar Jyotirlinga Temple

महाकालेश्वर में बनी मूर्ति को अक्सर दक्षिणामूर्ति भी कहा जाता है, क्योकि यह दक्षिण मुखी मूर्ति है। शिवेंत्र परंपरा के अनुसार ही 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक इसे चुना गया था। ओमकारेश्वर महादेव की प्रतिमा को महादेव तीर्थस्थल के उपर पवित्र स्थान पर बनाया गया है। इसके साथ ही गणेश, पार्वती और कार्तिकेय की प्रतिमा को भी पश्चिम, उत्तर और पूर्व में स्थापित किया गया है। दक्षिण की तरफ भगवान शिव के वाहन नंदी की प्रतिमा भी स्थापित की गयी है। कहा जाता है की यह बने नागचंद्रेश्वर के मंदिर को साल में सिर्फ नागपंचमी के दिन ही एक दिन के लिये खोला जाता है। इस मंदिर की कुल पाँच मंजिले है, जिनमे से एक जमीन के निचे भी है। यह मंदिर एक पवित्र गार्डन में बना हुआ है, जो सरोवर के पास विशाल दीवारों से घिरा हुआ है। इसके साथ ही निचले पवित्र स्थान पर पीतल के लैंप भी लगाये गए है। दुसरे मंदिरों की तरह यहाँ भी भक्तो को भगवान का प्रसाद दिया जाता है।
महाकालेश्वर का मंदिर का शिखर इस तरह से बनाया गया है की हमें यह आकाश की छूता हुआ दिखाई देता है, अपने आप में ही यह एक चमत्कार है। उज्जैन का महाकाल मंदिर शहर जे जनजीवन पर भी अपना वर्चस्व रखता है और वर्तमान समय में भी पारंपरिक हिन्दू परंपराओ को दर्शाता है।
महा शिवरात्रि के दिन, मंदिर के पास एक विशाल महोत्सव का आयोजन किया जाता है और देर रात तक भगवान शिव की पूजा की जाती है।
महाकालेश्वर मंदिर की सीमा में श्री स्वपनेश्वर महादेव मंदिर भी आता है, जहाँ भक्त महाकाल के रूप में शिवजी की पूजा करते है, और अपने सपनो को पूरा करने की उनसे मनोकामना करते है। सदाशिव मंदिर, समानुभूति को दर्शाने वाला मंदिर है, जहाँ भक्त सच्चे दिल से भगवान शिव को प्रार्थना करते है। ऐसा माना जाता है की यहाँ महादेव स्वपनेश्वर है और शक्ति स्वपनेश्वरी है।
यह मंदिर सुबह 4 से रात 11 बजे तक खुला रहता है।
7 वी शताब्दी में मंदिर की मरम्मत भी की गयी थी और इसे काफी हद तक सजाया भी गया था।

शक्ति पीठ के रूप में महाकालेश्वर मंदिर –
इस पवित्र तीर्थस्थान को 18 महा शक्ति पीठ में भी शामिल किया गया है।
शक्ति पीठ भी एक प्रकार से तीर्थस्थल ही होते है, जहाँ ऐसा माना जाता है की उस जगह पर जाने से इंसान के शरीर को आंतरिक शक्ति मिलती है। सभी शक्ति पीठ अपनी शक्तियों के लिये प्रसिद्ध है।

महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग – Mahakaleshwar Jyotirlinga
शिव पुराण के अनुसार, एक बार ब्रह्मा और भगवान विष्णु रचना की महत्ता को लेकर बहस करने लगे थे। उनकी परीक्षा लेने के लिये शिवजी ने प्रकार के पिल्लर, ज्योतिर्लिंग को तीन भागो में बाटा। भगवान विष्णु और ब्रह्मा ने क्रमशः निचे और तरफ से और उपर की तरफ से अपने रास्तो की बाटा ताकि के प्रकाश के अंत को जान सके। इसके बाद ब्रह्मा ने झूट बोला की उन्हें अंत मिल गया, जबकि भगवान विष्णु ने अपनी हार स्वीकार की थी। तभी शिवजी दुसरे पिल्लर में से प्रकट हुए और ब्रह्मा जी को उन्होंने अभिशाप दिया की दैवीय पूजा में ब्रह्मा को कोई स्थान नही मिलेंगा जबकि भगवान विष्णु को लोग हमेशा पूजते रहेंगे। कहा जाता है की इन 12 ज्योतिर्लिंगों में शिवजी का थोडा-थोडा भाग रहता है। शिवजी के रूप में ज्योतिर्लिंग के कुल 64 प्रकार है, लेकिन फिर भी इन 12 ज्योतिर्लिंगों की अलग ही पहचान है। 12 ज्योतिर्लिंगों में से हर एक ज्योतिर्लिंग का एक अपना ही अलग नाम है – जो भगवान शिव के विविध प्रत्यक्षीकरण पर आधारित है।
भारतीय स्वतंत्रता के बाद महाकालेश्वर मंदिर देव सुल्तान ट्रस्ट के हाथो से उज्जैन महानगरपालिका के अधीन चला गया। और आज यह मंदिर उज्जैन जिला कलेक्टर ऑफिस के अधीन आता है।

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